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यन्नू॒नं धी॒भिर॑श्विना पि॒तुर्योना॑ नि॒षीद॑थः । यद्वा॑ सु॒म्नेभि॑रुक्थ्या ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yan nūnaṁ dhībhir aśvinā pitur yonā niṣīdathaḥ | yad vā sumnebhir ukthyā ||

पद पाठ

यत् । नू॒नम् । धी॒भिः । अ॒श्वि॒ना॒ । पि॒तुः । योना॑ । नि॒ऽसीद॑थः । यत् । वा॒ । सु॒म्नेभिः॑ । उ॒क्थ्या॒ ॥ ८.९.२१

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:9» मन्त्र:21 | अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:33» मन्त्र:6 | मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:21


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शिव शंकर शर्मा

प्रातकालिक विधि कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) हे अश्वयुक्त राजा और अमात्यादिवर्ग आप दोनों इस प्रातः समय (यद्) यदि (पितुः) पिता के (योना) गृह पर अर्थात् राजधानी में (धीभिः) अन्यान्य कर्मों में लगे हुए (निषीदथः) हों (यद्वा) यद्वा (उक्थ्या) हे माननीयो ! यदि आप दोनों कहीं अन्यत्र (सुम्नेभिः) सुख से बैठे हुए हों, उस सब स्थान से इस समय (नूनम्) अवश्य ही ईश्वर की उपासना करें ॥२१॥
भावार्थभाषाः - प्रातःकाल कदापि भी आलस्य से युक्त हो राजा न सोता रहे। यह शिक्षा इससे देते हैं ॥२१॥
टिप्पणी: यह अष्टम मण्डल का नवम सूक्त और तेंतीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (उक्थ्या) हे स्तुत्य (अश्विना) सेनाध्यक्ष तथा सभाध्यक्ष ! (यत्) यदि (नूनम्) निश्चय (धीभिः) कर्मों को करते हुए (पितुः, योनौ) स्वपालक स्वामी के सदन में (निषीदथः) वसते हों (यद्वा) अथवा (सुम्नेभिः) सुखसहित स्वतन्त्र हों, तो भी आएँ ॥२१॥
भावार्थभाषाः - हे प्रशंसनीय सभाध्यक्ष तथा सेनाध्यक्ष ! हम लोग आपका आह्वान करते हैं कि आप हमारे विद्याप्रचाररूप यज्ञ को पूर्ण करते हुए हमारे योगक्षेम का सम्यक् प्रबन्ध करें, जिससे हम धर्मसम्बन्धी कार्यों के करने में शिथिल न हों ॥२१॥ यह नवम सूक्त और तेतीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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शिव शंकर शर्मा

प्रातर्विधिमाह।

पदार्थान्वयभाषाः - हे अश्विना=अश्विनौ=अश्वयुक्तौ राजानौ। यद्=यदि युवां सम्प्रति पितुर्जनकस्य। योना=योनौ=गृहे=स्वराजधान्याम्। धीभिः=अन्यान्यैः कर्मभिः सह। निषीदथः=उपविशथो वर्तेथे। यद्वा। हे उक्थ्या=उक्थ्यौ माननीयौ ! अन्यत्र क्वचित्। सुम्नेभिः=सुम्नैः सुखैः सह वर्तेथे। तस्मात् सर्वस्मात् स्थानादिदानीम् ईश्वरमुपीसायाथाम् ॥२१॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (उक्थ्या) हे स्तुत्यौ (अश्विना) अश्विनौ ! (यत्) यदा (नूनम्) निश्चयम् (धीभिः) कर्मभिः (पितुः) स्वामिनः (योनौ) सदने (निषीदथः) वसेतम् (यद्वा) अथवा (सुम्नेभिः) सुखैः सह स्वतन्त्रं निवसेतम्, तदाप्यायातम् ॥२१॥ इति नवमं सूक्तं त्रयस्त्रिंशो वर्गश्च समाप्तः ॥